women’s property rights: आज के समय में महिला सशक्तीकरण की बातें तो बहुत होती हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से अभी भी बहुत सी महिलाएं अपने बुनियादी अधिकारों से अनजान हैं। विशेष रूप से संपत्ति के अधिकारों की बात करें तो अधिकतर महिलाएं इस विषय में पूरी जानकारी नहीं रखतीं। इसका नतीजा यह होता है कि जब पारिवारिक विवाद होते हैं तो महिलाएं अपने वैध हकों से वंचित रह जाती हैं। पति-पत्नी के बीच संपत्ति को लेकर होने वाले विवाद अक्सर न्यायालयों तक पहुंचते हैं।
संपत्ति के मामले में महिलाओं को अपने अधिकारों की पूरी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। कई बार पारिवारिक कलह के दौरान पुरुष यह दावा करते हैं कि संपत्ति केवल उनकी है और महिलाओं का इसमें कोई हिस्सा नहीं है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को कानूनी प्रावधानों की जानकारी होना बेहद जरूरी है ताकि वे अपने हकों की रक्षा कर सकें।
पति के नाम की संपत्ति में पत्नी के अधिकार
जब कोई संपत्ति केवल पति के नाम पर हो और दंपति के बीच आपसी सहमति से तलाक हो जाए तो ऐसी स्थिति में पत्नी का उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। इस परिस्थिति में पति को यह अधिकार है कि वह अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल सके और पत्नी उस संपत्ति पर कोई दावा नहीं कर सकती। हालांकि इस स्थिति में भी पत्नी पति से गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस अलाउंस की मांग कर सकती है।
यह नियम उन मामलों में लागू होता है जहां संपत्ति पूरी तरह से पति की कमाई से खरीदी गई हो और उसमें पत्नी का कोई आर्थिक योगदान न हो। ऐसी संपत्ति पर पत्नी का कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता क्योंकि वह पति की व्यक्तिगत संपत्ति मानी जाती है। लेकिन यह स्थिति तभी लागू होती है जब तलाक आपसी सहमति से हुआ हो।
संयुक्त नाम की संपत्ति में अधिकार
यदि कोई संपत्ति पति और पत्नी दोनों के नाम पर खरीदी गई है तो उस पर दोनों का समान अधिकार होता है। ऐसी संपत्ति को संयुक्त संपत्ति कहा जाता है और इसमें दोनों की साझेदारी होती है। तलाक के बाद भी इस संपत्ति को बांटा जा सकता है और दोनों पक्ष अपने हिस्से का दावा कर सकते हैं। न्यायालय में इसके लिए संपत्ति खरीदते समय किए गए निवेश के प्रमाण मांगे जा सकते हैं।
इस प्रकार की संपत्ति में हिस्सेदारी का निर्धारण इस आधार पर होता है कि दोनों में से किसने कितना पैसा लगाया था। यदि दोनों ने बराबर योगदान दिया है तो संपत्ति में भी बराबर हिस्सा मिलता है। लेकिन अगर किसी एक ने अधिक निवेश किया है तो उसे उसी अनुपात में अधिक हिस्सा मिल सकता है। न्यायालय के फैसले के अनुसार ही अंतिम बंटवारा होता है।
पारिवारिक विवाद की स्थिति में संपत्ति अधिकार
कई बार पति-पत्नी के बीच विवाद इतना बढ़ जाता है कि वे अलग-अलग रहने को मजबूर हो जाते हैं लेकिन तलाक नहीं लेते। ऐसी परिस्थिति में भी पत्नी का पति की संपत्ति में अधिकार बना रहता है। यदि संपत्ति संयुक्त रूप से खरीदी गई है तो दोनों पक्षों को अपने निवेश के प्रमाण और दस्तावेज सुरक्षित रखने चाहिए। इन कागजातों से यह साबित हो सकता है कि संपत्ति खरीदने में किसका कितना योगदान था।
ऐसे मामलों में आपसी समझौते से भी समस्या का समाधान हो सकता है। दोनों पक्ष चाहें तो एक-दूसरे की हिस्सेदारी खरीद सकते हैं और पूरी संपत्ति पर एक व्यक्ति का अधिकार हो सकता है। यह विकल्प अक्सर न्यायालयी प्रक्रिया से बेहतर और तेज होता है।
तलाक की कार्यवाही के दौरान संपत्ति अधिकार
जब तक तलाक का मामला न्यायालय में चल रहा हो और अंतिम फैसला न आ गया हो तब तक पत्नी का पति की संपत्ति में अधिकार बना रहता है। तलाक का फैसला आने के बाद ही संपत्ति के अधिकार की स्थिति में बदलाव हो सकता है। इस दौरान यदि पति किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाता है या दूसरी शादी कर लेता है तो भी पहली पत्नी और उसके बच्चों का संपत्ति पर अधिकार बना रहता है।
यह कानूनी सुरक्षा इसलिए दी गई है ताकि तलाक की लंबी प्रक्रिया के दौरान महिलाओं का शोषण न हो सके। कई बार पुरुष तलाक की कार्यवाही को जानबूझकर लंबा खींचते हैं ताकि महिलाएं परेशान होकर अपने अधिकार छोड़ दें। इस कानूनी प्रावधान से महिलाओं को संरक्षण मिलता है।
पैतृक संपत्ति में पत्नी के अधिकार
पति की पैतृक या खानदानी संपत्ति में भी पत्नी का अधिकार होता है। यह अधिकार पत्नी को अपने पति के माध्यम से प्राप्त होता है। इसी आधार पर पत्नी ससुराल की संपत्ति में रहने का अधिकार रख सकती है। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो और जिसमें पति का भी हिस्सा हो। चूंकि पति का उस संपत्ति में अधिकार है इसलिए पत्नी का भी अधिकार बनता है।
हालांकि यह अधिकार कुछ शर्तों के साथ आता है। यदि पति अपनी संपत्ति की वसीयत किसी और के नाम कर दे तो पत्नी को यह अधिकार नहीं मिल सकता। लेकिन सामान्य परिस्थितियों में पत्नी को पति की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है। यह अधिकार विवाह के साथ ही स्थापित हो जाता है और तलाक तक बना रहताहै।
वसीयत और उत्तराधिकार के नियम
संपत्ति के अधिकार की बात करते समय वसीयत का विषय भी महत्वपूर्ण है। यदि पति अपनी संपत्ति की वसीयत बनाकर उसे किसी और के नाम कर देता है तो पत्नी का उस संपत्ति पर अधिकार समाप्त हो सकता है। लेकिन यह वसीयत तभी मान्य होगी जब वह कानूनी रूप से सही हो और उसमें कोई धोखाधड़ी न हो। भारतीय कानून में पत्नी और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान हैं।
उत्तराधिकार के मामले में भी महिलाओं के अधिकार सुरक्षित हैं। पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर पत्नी और बच्चों का पहला अधिकार होता है। यह अधिकार तब भी बना रहता है जब पति कोई वसीयत न छोड़े। कानून के अनुसार पत्नी को पति की संपत्ति में उचित हिस्सा मिलना चाहिए।
कानूनी सलाह और दस्तावेजों का महत्व
संपत्ति के मामलों में महिलाओं को हमेशा कानूनी सलाह लेनी चाहिए और अपने सभी दस्तावेज सुरक्षित रखने चाहिए। विवाह प्रमाण पत्र, संपत्ति के कागजात, बैंक स्टेटमेंट और निवेश के प्रमाण जैसे दस्तावेज अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। ये दस्तावेज न्यायालय में अपने अधिकार सिद्ध करने के लिए आवश्यक होते हैं। महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी रखनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर कानूनी मदद लेने से हिचकना नहीं चाहिए।
समय-समय पर कानूनी प्रावधानों में बदलाव होते रहते हैं इसलिए नवीनतम जानकारी रखना भी आवश्यक है। महिला अधिकार संगठन और कानूनी सहायता केंद्र इस विषय में महत्वपूर्ण जानकारी और सहायता प्रदान करते हैं।
Disclaimer
यह लेख सामान्य कानूनी जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। संपत्ति अधिकार के नियम विभिन्न राज्यों में अलग हो सकते हैं और व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार बदल सकते हैं। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले योग्य वकील से सलाह लेना आवश्यक है। यह लेख कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है और इसे केवल सूचना के रूप में लिया जाना चाहिए।