RBI: हाल के दिनों में एटीएम से पैसे निकालने वाले लोगों ने एक महत्वपूर्ण बदलाव महसूस किया है। पहले जहां एटीएम से मुख्यतः 500 रुपये के नोट मिलते थे, वहीं अब 100 और 200 रुपये के नोट मिलना आम हो गया है। यह बदलाव अचानक नहीं आया है बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। आरबीआई ने अप्रैल 2025 में सभी बैंकों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वे अपने एटीएम में छोटी करेंसी की मात्रा बढ़ाएं।
इस बदलाव के पीछे आम लोगों की दैनिक जरूरतों को पूरा करने का उद्देश्य है। छोटे नोट रोजमर्रा के खर्च के लिए अधिक सुविधाजनक होते हैं और इससे लेन-देन में आसानी होती है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, देश के 73 प्रतिशत एटीएम में पहले से ही कम से कम एक कैसेट छोटी करेंसी से भर दिया गया है। यह एक सकारात्मक प्रगति है जो आरबीआई की नीति की सफलता को दर्शाती है।
आरबीआई के सर्कुलर की विस्तृत जानकारी
भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2025 में जारी अपने महत्वपूर्ण सर्कुलर में स्पष्ट रूप से कहा था कि सभी बैंकों को अपने कम से कम 75 प्रतिशत एटीएम में 100 और 200 रुपये के नोट अवश्य रखने होंगे। यह निर्देश चाहे केवल एक कैसेट को ही क्यों न भरना पड़े, लागू करना आवश्यक है। आरबीआई ने इस नीति के कार्यान्वयन के लिए 30 सितंबर 2025 की स्पष्ट समय सीमा भी निर्धारित की है।
केंद्रीय बैंक का यह मानना है कि छोटे नोटों की संख्या बढ़ाने से आम लोगों के रोजाना के खर्च के लिए नकदी उपलब्ध कराना काफी आसान हो जाएगा। आरबीआई ने अपने दीर्घकालिक लक्ष्य में यह भी शामिल किया है कि 31 मार्च 2026 तक देश के 90 प्रतिशत एटीएम में छोटी करेंसी उपलब्ध कराना होगा। यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है जो भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक बड़ा सुधार लाएगा।
भारत में नकदी का निरंतर महत्व
सीएमएस इन्फो सिस्टम के अध्यक्ष अनुष राघवन, जो भारत की सबसे बड़ी कैश प्रबंधन कंपनी के प्रमुख हैं, के अनुसार भारत में अभी भी 60 प्रतिशत लोग नकदी में खर्च करना पसंद करते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि डिजिटल भुगतान के बढ़ते प्रचलन के बावजूद भी नकदी का महत्व कम नहीं हुआ है। विशेषकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी की मांग अभी भी काफी अधिक है।
इस स्थिति को देखते हुए आरबीआई का निर्णय बहुत ही व्यावहारिक और दूरदर्शी है। एटीएम में 100 और 200 रुपये के नोट भरने से लोगों को, खासकर कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में, दैनिक खर्च करने में काफी आसानी होगी। सीएमएस इन्फो सिस्टम देश के 2.15 लाख एटीएम में से 73 हजार का प्रबंधन करती है, जो इस बदलाव के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
एटीएम शुल्क में वृद्धि का विरोधाभास
दिलचस्प बात यह है कि आरबीआई ने एक विरोधाभासी कदम उठाया है। एक ओर जहां वह छोटी करेंसी उपलब्ध कराकर नकदी लेन-देन को बढ़ावा देना चाहता है, वहीं दूसरी ओर उसने एटीएम से नकदी निकालने पर लगने वाली फीस भी बढ़ा दी है। 1 मई 2025 से प्रभावी इस बदलाव के तहत, दूसरे बैंक के एटीएम से महीने में तीन मुफ्त निकासी के बाद हर निकासी पर 19 रुपये का शुल्क लगेगा, जो पहले 17 रुपये था।
इसके अलावा केवल बैलेंस चेक करने पर भी अब 7 रुपये प्रति ट्रांजेक्शन चार्ज किया जाएगा, जो पहले 6 रुपये था। यह नीति कुछ हद तक विरोधाभासी लगती है क्योंकि एक ओर तो छोटी करेंसी उपलब्ध कराकर नकदी के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एटीएम के उपयोग को महंगा बनाया जा रहा है। हो सकता है कि यह रणनीति लोगों को अपने ही बैंक के एटीएम का अधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित करने के लिए अपनाई गई हो।
500 रुपये के नोट को लेकर बढ़ती अटकलें
आरबीआई द्वारा एटीएम में छोटी करेंसी बढ़ाने के निर्देश के बाद, 500 रुपये के नोट बंद होने की चर्चा फिर से तेज हो गई है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू समेत कई विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं ने नकली नोट और मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या को रोकने के लिए 500 रुपये के नोटों को बंद करने की सिफारिश की है। उनका तर्क है कि बड़े नोट अवैध गतिविधियों में अधिक उपयोग होते हैं।
हालांकि, अभी तक आरबीआई या केंद्र सरकार की ओर से 500 रुपये के नोट बंद करने की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। फिर भी, आरबीआई का छोटी करेंसी को बढ़ावा देने का यह कदम इस बात की संभावना को बढ़ाता है कि भविष्य में बड़ी करेंसी को लेकर कोई महत्वपूर्ण निर्णय लिया जा सकता है। यह 2016 के नोटबंदी के बाद से करेंसी नीति में सबसे बड़ा संभावित बदलाव हो सकता है।
आर्थिक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
छोटी करेंसी को बढ़ावा देने की यह नीति भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। पहला, इससे छोटे व्यापारियों और दुकानदारों को लेन-देन में आसानी होगी। दूसरा, ग्रामीण क्षेत्रों में जहां डिजिटल भुगतान की पहुंच अभी भी सीमित है, वहां नकदी की उपलब्धता बेहतर होगी। तीसरा, यह नीति मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में भी सहायक हो सकती है क्योंकि छोटे नोट अधिक पारदर्शी लेन-देन को बढ़ावा देते हैं।
भविष्य में यदि 500 रुपये के नोट बंद किए जाते हैं तो यह एक बड़ा आर्थिक सुधार हो सकता है। इससे कालाधन पर नियंत्रण, नकली नोटों की समस्या में कमी, और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ सकती है। हालांकि, ऐसे किसी भी बड़े निर्णय को लागू करने से पहले सरकार और आरबीआई को सभी संभावित प्रभावों पर गहराई से विचार करना होगा। वर्तमान में छोटी करेंसी को बढ़ावा देने की नीति एक सकारात्मक कदम है जो आम लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।
Disclaimer
यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और किसी भी वित्तीय सलाह का विकल्प नहीं है। आरबीआई की नीतियों में समय-समय पर बदलाव हो सकते हैं। नवीनतम जानकारी के लिए आरबीआई की आधिकारिक वेबसाइट देखें या अपने बैंक से संपर्क करें।